बचपन में सिखाई जाने वाली अच्छी चीजों में से एक होता है, जो जैसा है उसे वैसा कह देना. मिलावट नहीं करना. जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता जाता है, हम उसे मिलावट करना सिखाते जाते हैं. कुछ लोग दुनियादारी कहते हैं, तो कुछ समय की जरूरत.
ऐसा करने वाले असल में भूल जाते हैं कि हम किसके सहारे टिके होते हैं. हम सबने पेड़ देखे हैं, उस पर बैठे परिंदे भी. कभी ख्याल कीजिए, पेड़ पर बैठे परिंदे किसके भरोसे टिके होते हैं. वह पंखों के भरोसे टिके होते हैं, डाल की मजबूती से नहीं. यह बात हम सब जानते हैं, लेकिन जैसे जैसे हम बड़े होते जाते हैं भूलते जाते हैं कि हम किसके सहारे टिके हैं! हमें लगता है, हम डाल की मजबूती से बचे हुए हैं, जबकि हम केवल अपने 'पंखों' की काबिलियत से बचे होते हैं. भरोसा एक बड़ी चीज है, एक बार डगमगाने के बाद दोबारा इसका बनना मुश्किल होता जाता है.
रेलवे स्टेशन पर हम कभी-कभी कुली का सहारा ले लेते हैं. वह स्टेशन के बाहर तक पहुंचने में मदद करता है. स्टेशन का यह नियम उसके बाहर काम नहीं करता. दूसरे की मदद की सीमा कहीं न कहीं जाकर खत्म ही होनी है. इस सहज, सरल नियम को हम सब सजग याद रखते हैं, बस घर, परिवार और रिश्तों की बात आते ही इसे भूल जाते हैं.
सहारा किसी का भी क्यों न हो, उसकी सीमा है. एक सीमा से आगे कोई आपकी मदद नहीं कर सकता. इसलिए अंतत: हमें अपने पंखों की मजबूती पर ही टिके रहना होता है. पंख उड़ने से ही मबबूत होते हैं, घोसले, डाल पर बैठे रहने से नहीं.
इसलिए, जीवन में भले ही आप किसी भी चीज से समझौता कर लें, लेकिन आपको कभी भी अपने पंख की मजबूती से समझौता नहीं करना है. आत्मनिर्भर बनने की निरंतर कोशिश बनी रहनी चाहिए.आत्मनिर्भरता एक गुण है. इसका आपकी शक्तियों से कोई लेना देना नहीं है. आत्मनिर्भरता की आदत को अपने भीतर विकसित करना, स्वभाव की बात है. इससे धीमे-धीमे ही सही लेकिन हमारे मन, आत्मा और स्नेह को शक्ति मिलती है.