आईआईटी दिल्ली के छात्रों ने पहले दाह संस्कार में लकड़ी की जगह पर गाय के गोबर से बनें लॉग्स का इस्तेमाल करने के लिए लोगों को जागरूक किया था। वहीं इस बार छात्रों ने होली पर लकड़ी नहीं जलाने की अपील की है।
उन्होंने होलिका दहन के लिए लकड़ी का विकल्प भी तैयार कर दिया है। छात्रों ने गाय के गोबर से लॉग्स बनाए हैं। अगर गोबर से लठ्ठों का प्रयोग करते हैं, तो पेड़ कटने से बच जाएंगे और पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा। गोबर से बने लॉग्स को जब होली पर जलाया जाएगा, तो उनसे कार्बन डाइऑक्साइड की जगह पर ऑक्सीजन पैदा होगी।
दिल्ली-एनसीआर में इस बार करीब 14 जगहों पर गोबर से बने लॉग्स से होली जलाई जाएगी। आईआईटी के छात्रों का कहना है कि एक दाह संस्कार में दो सामान्य पेड़ कटने जितनी लकड़ी लग जाती है। एक साल में दाह संस्कार के लिए करीब 50 मिलियन (पांच करोड़) पेड़ काटे जाते हैं।
इस तरह से तो जंगल कम होते जाएंगे। लकड़ी से जब कोई दाह संस्कार होता है, तो उससे वायु प्रदूषण भी होता है। दो साल पहले गोबर लॉग्स का इस्तेमाल करने के लिए लोगों को प्रेरित किया था। अब कई जगहों पर इसका इस्तेमाल किया जाने लगा है।
अर्थ प्रोजेक्ट पर काम कर रहे छात्रों में नमन, यश, मौलिक, अमन, रितिक, आशिता, मुदित और अमित का कहना है कि एक किलोग्राम का गाबर लॉग्स तैयार करने में आठ रुपये लगते हैं। होलिका दहन के लिए करीब सौ किलो लॉग्स की जरूरत होती है। ये लॉग्स पूरी तरह इकोफ्रेंडली होते हैं।
दिल्ली में आठ जगहों पर स्थित गौशालाओं में ये लॉग्स बनाए जा रहे हैं। अभी तक करीब 5000 किलो गोबर लॉग्स बनाने का ऑर्डर मिला है। साथ ही दिल्ली के अलावा भोपाल में भी सौ टन लॉग्स बनाए जा रहे हैं। इनके अलावा उड़ीसा, गोवा और दूसरे कई राज्यों में भी काऊ डंग लॉग्स का इस्तेमाल करने के लिए विभिन्न संगठनों से संपर्क किया गया है।